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साल-2010...भोपाल गैस त्रासदी के उससे भी ज़्यादा त्रासदी भरे फ़ैसले ने एक शहर के घावों को तो नहीं भरा लेकिन एक बेहद ज़रूरी बहस छेड़ने में ज़रूर मदद की है। ये बहस है न्यूक्लियर लायबलिटी बिल की। लायबलिटी..हिंदी में ज़िम्मेदारी। बिल के मसौदे में ज़िम्मेदारी शब्द की जो बखिया उधेड़ी गई है उससे क्यूं न इसे न्यूक्लियर नॉन लायबलिटी बिल कहा जाए। बिल के मुताबिक़ किसी भी हादसे की सूरत में, फिर चाहे वो कितना भी बड़ा क्यूं न हो...हर्जाने की रक़म 2200 करोड़ से ज़्यादा नहीं होगी यानि क़रीब 500 मिलियन डॉलर, जिसमें से विदेशी कंपनी 500 करोड़ से ज़्यादा नहीं देगी बाक़ी मुआवज़ा भारत सरकार को देना होगा। देश के अंदर क्लेम कमिश्नर बनेंगे, मामला वही देखेंगे, सिविल कोर्ट में मुक़दमा नहीं चलेगा। कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं। मंज़ूर हो तो बोलो वर्ना हमें और भी काम है-इस किस्म के तेवर। सरकार मंज़ूरी देना भी चाहती है। राजनीतिक हलकों से विरोध के कोई ख़ास स्वर भी नहीं उठ रहे। ऐसे में मुमकिन है बिल पास भी हो जाए। और, फिर ख़ुदा न करे, कभी एक और भोपाल कहीं हुआ तो वो कई भोपालों के बराबर होगा। रिसते हुए ज़ख़्मों का तब न कोई इलाज होगा न ही नीयत। क्यूंकि ऐसे सभी हालातों के बारे में तथाकथित ज़िम्मेदारियां पहले ही तय की जा चुकी होंगीं।
भोपाल के लिए ज़िम्मेदार यूनियन कार्बाइड को इसी 20 मई को अमेरिकी अदालत के एक फ़ैसले के मुताबिक़ कंपनी के बनाए गए एस्बेस्टस से एक कर्मचारी को कैंसर हो गया और वो 14 मिलियन डॉलर के मुआवज़े का हक़दार है। भोपाल के हर्जाने के तौर पर दिए गए 470 मिलियन डॉलर को अगर अब तक 5 लाख से ज़्यादा लोगों से विभाजित किया जाए तो ये पैसा बैठता है 800 डॉलर। यानि एक अमेरिकन जान की क़ीमत भारतीय की जान से 17000 गुना है।
अब ज़रा हाल ही में गल्फ़ ऑफ़ मैक्सिको में हुए ऑयल स्पिल को देखिए। इस हादसे के लिए ज़िम्मेदार ब्रिटिश पेट्रोलियम यानि बीपी को 2 बिलियन डॉलर तो सिर्फ़ पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए देने होंगे। फिर बीपी को पूरी दुनिया मे विलेन के तौर पर पेश करने में ख़ुद राष्ट्रपति बराक ओबामा आगे आ रहे हैं। सैकड़ों मिलियन डॉलर तटीय इलाक़ों में रह रहे लोगों को बांट भी दिए गए हैं। ये सब वहां जहां एक भी इंसानी जान नहीं गई है।
चलते-चलते, वॉरेन एंडरसन की वो बात जो हमें एक देश के तौर पर हमारी औकात बता देती है- "House arrest or no house arrest or bail or no bail, I am free to go home...There is a law of the US...India bye bye,thank you" Anderson on Dec, 7, 84.