Thursday, November 20, 2008

'विकास' भैया लौट आओ...



आदरणीय विकास भैया,

आप कहां चले गए हो...आपको तो पता है कि आप घर में सबके कितने लाड़ले हो। लौट के क्यूं नहीं चले आते। पांच साल हो गए आपको घर छोड़े। घर में सब लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं। अम्मा ने तो शुरु शुरु में खाना भी छोड़ दिया था। बाऊजी मोहल्ले की गलियों से लेकर शहर की सड़कों तक की ख़ाक छान आए हैं। पर मानो आपको न मिलना था न आप मिले। लेकिन पिछले कुछ दिनों में जाने कैसा चमत्कार हुआ है। और इसी की वजह से पिछली तमाम नाकाम चिट्ठियों के बावजूद अख़बार में ये चिट्ठी छपने के लिए दे रही हूं। बीते कुछ दिनों में आपके नाम के पोस्टरों से गली के दोनों तरफ़ की दीवारें पट गई हैं। लाउडस्पीकर पर आपके बारे में बात हो रही है। सफ़ेद कपड़े पहने कुछ लोगों को कल मुन्नी ने चौक पर आपके बारे में बात करते सुना था। कह रहे थे इस बार विकास के नाम पर वोट पड़ेंगे। वो झूठ बोल रहे होंगे न भइया क्योंकि आपका कारड तो बना ही नहीं है। आप कैसे वोट दोगे। टीवी वाले भी आपकी ही बात कर रहे हैं। ये सब अचानक क्यूं भैया। आप तो जानते ही हैं कि मैं पढ़ाई में कुछ ख़ास नहीं रही और शुरु से आपको तेज़ होने की वजह से अपना आदर्श मानती हूं। इस सवाल का जवाब आप ही ही सकते हैं।

आपकी नाराज़गी की वजह क्या है भैया? यूं तो आप पहले भी बीच बीच में जाते रहे हैं लेकिन इतने लंबे समय के लिए नहीं...इस तरह रुठ कर नहीं। इस बार तो जैसे आपने न लौटने की क़सम खा रखी हो। पूरा मोहल्ला जानता है कि आपको बेईमानी से कितनी नफ़रत थी। यही वजह है कि बाऊजी ने गांव वाली ज़मीन के जो झूठे काग़ज़ बनवाये थे, उसके लिए अपनी ग़लती क़बूल करने के लिए तैयार हैं। अम्मा भी भाजी वाले से धनिया-मिर्च के लिए ज़बर्दस्ती नहीं करेंगी। अपने मास्टरजी अब स्कूल के फ़र्नीचर को बाज़ार में नहीं बेचने के लिए राज़ी हो गए हैं। ये सब आपके लिए बदल रहे हैं भैया...ये सब इसलिए ताकि आप लौट आओ। आप लौटोगे न भैया।

आपकी प्यारी बहन
प्रगति

नोट: जिसे भी विकास भैया मिलें इस पते पर सूचित करें-
श्री सत्य बैरागी
Z- 42, बैकवर्ड कॉलोनी
बर्बादपुरा
दिल्ली

3 comments:

  1. अच्छा व्यंग्य है।
    शुभकामनाएँ।

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  2. good satire! write something on communalism /terrorism /statism(thakarism) also

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  3. अच्छा व्यंग्य है।
    mayur

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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