चुनाव आयोग का आदर्श आचार संहिता नामक शस्त्र कई बार बड़े अजीब क़िस्म के हालात पैदा कर देता है। अब देखिए न, कहा जा रहा है कि स्कूलों की दीवार से कमल का फूल, घड़ी, साइकिल और दूसरे तमाम चित्र जो किसी पार्टी का चुनाव चिन्ह हो सकते हैं, उन्हें मिटाना होगा। ये आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आता है। बच्चा जब पूछेगा, सर हमारा राष्ट्रीय फूल कौन सा है? तो जवाब में शायद मास्साब कह दें, बेटा, मेरी मजबूरी समझ...गर्मी की छुट्टी के बाद पूछ लेना...सब बता दूंगा। ये सारे नियम उनके लिए भी जिनकी न तो अभी वोट डालने की उम्र है और न ही वो अपने घरों में मत को प्रभावित करने की ताक़त रखते हैं। तो फिर ये बवाल काहे के लिए...ख़ैर ये देखते-सोचते मुझे लगा कि अगर चुनाव आयोग आचार संहिता को लेकर थोड़ा और गम्भीर हो गया तो उसके क्या नतीजे हो सकते हैं। मुमकिन है कि ऐसे कुछ आदेश जारी कर दिए जाते -
1. कमल नाम के सभी लोगों को चुनाव तक नज़रबन्द किया जाए क्यूंकि पब्लिक में उनका नाम पुकारे जाने पर ख़ामख़्वाह दल विशेष को फ़ायदा पहुंचता है !
2. भारत सरकार औपचारिक तौर पर घोषणा कर राष्ट्रीय पुष्प को बदले !
3. ‘कीचड़ में कमल खिलता है’ जैसे मुहावरों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। हां, इसकी जगह कीचड़ में नेता खिला लो, हम कुछ नहीं कहेंगे !
4. सभी नागरिकों को शॉल ओढ़ कर रहना होगा। हम जानते हैं कि गर्मी में ये थोड़ा मुश्किल है इसलिए इसकी जगह सूती कपड़े को भी ओढ़ा जा सकता है। पहनने का तरीक़ा शोले की डीवीडी देख कर ठाकुर से सीखें। उद्देश्य साफ़ है- इससे आपके हाथ नज़र नहीं आएंगे और एक दल को अनचाहा प्रचार नहीं मिल पाएगा। सरकार सूती कपड़े और शोले की डीवीडी पर सब्सिडी दे !
5. बिना रुकावट जारी घरेलू हिंसा करने वालों को ताकीद दी जाती है कि वो हाथ न उठाएं। इससे कोमल गालों पर छपा निशान अगर किसी को नज़र आया तो आचार संहिता का उल्लंघन होगा। हमें उम्मीद है कि इससे घरेलू हिंसा के मामलों में भी कमी आएगी !
6. साइकिल धारक नागरिक, हथियार धारक नागरिकों की तरह अपनी साइकिलें जमा करवाएं। वो या तो ग़ैरमौजूद पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें या फिर नई नवेली नैनो को भी घर ला सकते हैं। पर साइकिल क़तई नहीं !
7. गांवो और शहरों में मौजूद सभी हाथियों को अपना निशान लगा कर पास के जंगलों में छोड़ दें। शहरों में उनमें जनमत प्रभावित करने का माद्दा नज़र आता है !
8. जिन गांवों में अब तक बिजली नहीं पहुंची है वो समझ लें कि अंधेरा दूर करने के लिए लालटेन का इस्तेमाल वर्जित माना जाएगा। वो मोमबत्ती उपयोग कर सकते हैं या फिर नोकिया के फ़्लैशलाइट वाले मोबाइल भी !
आख़िर में जनता जनार्दन से अपील है कि वो भी हमें अपने सुझाव दे।
भई वाह! क्या बात है। मुद्दा सोचने योग्य है।
ReplyDeleteपढनीयता के मामले में जवाब नहीं।
ReplyDeleteअच्छा मुद्दा है ... बच्चों को फायदा होगा ... चांटा मारना भी बंद ... बच्चे धमकी देंगे ... मां पापा की पुलिस में शिकायत कर दी जाएगी ।
ReplyDeleteकभी कभी आचार के नाम पर कुछ ऐसे कानून बन जाते है जो केवल किताबों में अचार बन कर ही रह जाते है:)
ReplyDeleteBahut sundar baat kahi hai.
ReplyDeleteVicharottejak hai.
~Jayan
यह तो बहुत दूर की सोच है। यदि आयोग ने इस प्रकार से विचार किया और कहीँ यदि कमल के पर्याय सूचक शब्दों पर, उसके नामधारी व्यक्तियों पर प्रतिबन्ध का विचार किया तो हम भी फंस जायेंगे, बन्धु!
ReplyDeletebadhiya...
ReplyDeleteacche natije ginaye hain aapne...sochne wala vishaye hai....!!
ReplyDeleteaapki baat sahi hai humko is par vicar karne ki jaroorat hai
ReplyDeletenice post...
ReplyDeleteThat is really good one.
ReplyDeleteI wish we had better thought process in citizens of Bhaarat.
Thanks,
Jayant
saare posts padh raha tha.. socha tha comment baad mein dunga.. par abki rok nahi paaya khud ko..
ReplyDeletehathaude ka prayog bhi band hona chahiye...
aur saare makaan gira dene chahiye.. bangla chhap wale ramvilaas ji ko fayda na pahunche!!!
कमानी वाला तराजू भी नहीं उपयोग हो पायेगा !!!!!!!!!
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