Tuesday, December 15, 2009

'पा' से प्रोमोशन

'पा' और '3 इडियट्स'... दो ऐसी फ़िल्में जो फ़िल्म प्रोमोशन का व्याकरण नए सिरे से लिख रही हैं। दो ऐसी फ़िल्में जिनके पास बड़े स्टार का तड़का है, बड़े निर्देशक की कमान है लेकिन फिर भी जिन्होंने मानो ठान रखा है कि लोग अगर इन्हें बेहतरीन फ़िल्म की तरह याद रखेंगे तो जुदा प्रोमोशन के लिए भी।
जब रॉकेट सिंह के विषय के बारे में सुना था तो लगा कि फ़िल्म का प्रोमोशन भी कमाल का होगा लेकिन मैं ग़लत निकला। सेल्समैनशिप के सबक तो 'पा' और '3 इडियट्स' सिखा रही हैं।

दरअसल 'पा' का प्रोमोशन कहीं न कहीं उस असुरक्षा से भी उपजा है जहां जोख़िम उठाने की ताक़त कम हो जाती है। एबी कॉर्प, अपने नए अवतार में जोख़िम उठाने के मूड में क़तई नहीं है। सो, एक कम बजट की अच्छी कहानी को बेचने के लिए जो करना पड़े वो तैयार है। एक 67 साल के कलाकार को, जिसके सीने पे सम्मान के तमाम तमगे जगमग हैं, टीवी स्क्रीन पर हर थोड़ी देर में ऑरो की आवाज़ में बात करते हुए कोई गुरेज़ नहीं है। और सच पूछिए तो हो भी क्यूं। अपना सामान बेचने में शर्म कैसी? अमिताभ बच्चन आपको चैनल-चैनल, उस स्पेशल डेंचर के साथ ऑरो बने मिल जाएंगे। अब तो ऑरो कमेंट्री भी कर चुका है। यानी अख़बार से लेकर टीवी, टीवी से वेब और वेब से आपके आइडिया मोबाइल तक, वो हर जगह मौजूद है।
ज़रा दिमाग़ पर ज़ोर डालिए, बताइये इससे पहले बच्चन साहब इस तरह प्रचार करते नज़र आए थे कभी?

अगर 'पा' का बोझ अमिताभ बच्चन ने अपने कंधों पे उठा ऱखा है तो '3 इडियट्स' के लिए मिस्टर परफ़ेक्शनिस्ट, आमिर ख़ान, अपने परफ़ेक्ट मेकओवर के साथ शहर दर शहर घूम रहे हैं। आपको याद होगा, 'गजनी' के प्रचार के दौरान आमिर का लोगों के बालों को वही स्टाइल देना। लेकिन इस बार वो अलग-अलग वेश में देश भ्रमण पर हैं। यानी वो केश की बात थी, ये वेश की है ! ख़बरिया चैनलों को बाक़ायदा इस 'भ्रमण' का वीडियो उपलब्ध कराया जाता है और हमारे चैनल इसे एक आज्ञा अथवा आदेश मानकर उसे पूरा करते हैं। आधे घंटे का अच्छा विजुअल मसाला जो है। चैनल को दर्शक मिलते हैं और आमिर की फ़िल्म को मुफ़्त का प्रचार। इसके लिए आमिर अपने चहेते क्रिकेटर और दोस्त सचिन को भी साथ ले आए हैं। पहला क्लू तो सचिन ने ही दिया था न।
इन दोनों फ़िल्म की प्रचार रणनीति ने कम से कम ये ज़रूर तय कर दिया है कि 2010 में अपनी फ़िल्म बेचने वालों को जमकर दिमाग़ी कसरत करनी पड़ेगी। तब तक, 2009 के 'सेल्समैन औफ़ द ईयर' सम्मान के हक़दार रॉकेट सिंह नहीं बल्कि 'पा' और '3 इडियट्स' हैं।

2 comments:

  1. बेचने की तकनीक की बात उठ्ठे तो मुझे लगता है गांव की मनिहारिन से सीखना चाहिये।
    और बहुत कुछ फिल्म वाले भी सीख सकते हैं उससे!
    पर पता नहीं आज की मनिहारिन कैसी है।

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  2. बहुत सलीके से अपनी बात समझाई!

    ताज के शहर में पैदाइश और तख्त के शहर में रोटी वाला परिचय वाला अंदाज मजेदार लगा।

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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