Thursday, October 25, 2007

ख़बर है !


अचानक कुछ शोर-गुल सुनकर
खिड़की खोल कर झांका बाहर
दृश्य देख चौंका ठिठका
कुछ घर आग के हवाले थे
अंधेरे घरों में उजाले थे
जो अंधेरे से भी काले थे

ये वो वक़्त था
जब आदमी आदमी से दूर था
माने दूरियों का दौर था
उठकर टीवी ऑन किया
कैमरा जो दिखा रहा था
वो देखने लायक नहीं था

पुलिस और प्रशासन
अक्सर मिलकर प्रयोग होने वाले शब्द
और साथ काम करने वाले लोग
पूरी तरह मुस्तैद थे
ऐसी ख़बर थी
शायद सच

दिन किसी तरह गुज़रा

अगले दिन का अख़बार
मेरे ख़याल से ख़ूब बिका होगा
क्यूंकि
मुखपृष्ठ पर थीं दो तस्वीरें
एक ज़िंदा जलाए गए युवक की धुंधली तस्वीर
और गिरफ़्तार लोगों की क्लोज़ अप तस्वीर

तस्वीरों के ऊपर ही ख़बर चस्पा थी
शहर में फिर दंगा भड़का
दो की मौत
शायद बिल्कुल ठीक
मज़हब और इंसानियत की मौत !

2 comments:

  1. Khabarchi...maut ki baatein kyon likhta hai...kuch khusi ki baat bhi likh diya kar!

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  2. हम दुनिया देश की बातें करते हैं, मज़ह्ब की बातें करते है, और समाज में फैली उन सारी बुराईयों की बातें करते हैं पर बात सिर्फ अपनी ही नहीं कर पाते. अपने मन में बैठे रावण की बात, उन सारे लोभ की बात जिसे अगर सामनेवाला जान जाए तो फिर बात ना करे, पर उस सच्चाई की बात हम कतई नहीं करते या करना नहीं चाहते.
    बाजार की बात करते हैं हम पर उस बाजार की चक्र्व्युह में खुद बडे शौक से जाते हैं, ब्रांडेड शर्ट खरीद कर अच्छा मह्सूस करते है, और शर्ट पहनने के बाद तो शाहरुख के भाई ही समझते हैं. हम प्राय्: सोचते हैं कि बाजार हमें लूट रहा है पर ऐसा नहीं है बाजार की नजर सिर्फ हवा, पानी पर ही नहीं भिखारी को भीख में मिले उस अठन्नी या चव्वनी पर भी होती है. हम पाउच में सामान खरीद कर या बाल करिश्मा कपूर की तरह लहराकर खुद को बाजार के अधीन करते हैं.
    तो इस तरह हम आप कोरी संवेदनशीलता दिखाकर अपने को संवेदनशील या भावुक मान बैठते हैं. सच्चाई यही है कि हर कोइ रावण हो गया और हम रावण के सिर्फ पुतले जलाकर या फिर बाजार को दोषी ठहराकर अपने जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते.
    आपकी 'खबर है' अगर सचमुच खबर है तो बहुत अच्छी खबर है. 'रामलीला' के बहाने बाजार पर किया गया कुठारघात बढिया है.

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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