Sunday, November 4, 2007

मैं मौत को मस्त बनाता हूं !


सुबह दफ़्तर पहुंच कर बैठा ही था कि असाइनमेंट से एक जानी पहचानी चीख़ कानों के परदे से टकराई।
- जाओ, भागो, एक बंदा कार में फंसा हुआ है आईएसबीटी के पास, अच्छा वैसे कोई ख़बर कर रहे हो क्या?
- नहीं, कुछ ख़ास नहीं। शामक एक स्कूल में आ रहा है।
- कोई बात नहीं, ये ज़्यादा ज़रूरी है। अब भागोsss

गए दिन की वोडाफ़ोन मैराथन में दौड़ा-दौड़ी के बाद टांगें भागने की आवाज़ का प्रतिरोध करना चाहती थीं लेकिन कर न सकीं। ख़ैर यूनिट ली और भाग लिए। मौक़े पर पहुंचे तो पिछली कविता की दो लाइनों का सहारा लेते हुए कहूं तो- कैमरा जो दिखा रहा था वो देखने लायक नहीं था। तभी असाइनमेंट का रास्ते में आए चार कॉल्स के बाद एक और कॉल- ओबी भेज दी है, तुरंत विजुअल भेजो। कैमरामैन जानते थे इस सब की अहमियत सो तुरंत मोर्चा संभाला और कर दिया छापना शुरु। अब विजुअल देखिए - कार सड़क किनारे लगे पेड़ से इतनी बुरी तरह टकराई थी कि उसका कचूमर ही निकल गया। उसमें 19 साल का लड़का फंसा हुआ। उसे बचाने के लिए रेस्क्यू टीम की मशक्कत। गैस कटर्स का इस्तेमाल। यानी काम ठीक से चल रहा था। लेकिन हम ठहरे टीवी वाले तो कर दिया शुरु सवाल दागना , वहां पहुंचे लड़के के दोस्तों और मां-बाप से। क्या हुआ, कैसे हुआ, पुलिस वक़्त पर पहुंची या नहीं, रेस्क्यू टीम वाले क्या कह रहे हैं, लड़के ने पी तो नहीं रखी थी, कितने बजे हुआ हादसा वगै़रह वग़ैरह। उफ़ सवालों की बौछार...। उसकी मां ने समझाने की कोशिश की कि ये किसी वाहन से टक्कर का मामला नहीं है सो प्लीज़ रेस्क्यू टीम और हमें बेवजह परेशान न करें, इससे ख़ामख़्वाह टीम को दिक़्क़त आ रही है। अभी इसका कुछ जवाब सोच ही रहा था कि उस लड़के की एक समझदार सी दिखने वाली दोस्त मेरे पास आ पहुंची। आते ही अंग्रेज़ी में गिटपिट शुरु। Are these your ethics? Is this what u have studied? Is this what Mr. A P has taught u? What kind of news is this? Is this some kind of an entertainment for you? He is trapped inside. उस समय तो हड़का दिया कहकर कि don't try to teach me my work. और काम जारी रखा। लेकिन अब काम में अडंगा डालने के लिए कुछ अहम् सवाल तो उसने उठा ही दिए थे जिनके जवाब थे तो बहुत सीधे लेकिन शायद मेरे पास इतनी हिम्मत नहीं थी कि उससे कह सकूं और सच कहूं तो शायद इस सूरते हाल में किसी के पास नहीं हैं। Ethics- बहुत दिनों बाद ये शब्द सुन रहा था, कुछ अजीब लगा सुनकर। लगा मानो किसी ने ज़ोरदार थप्पड़ मार दिया हो और फिर गाल सहलाने से भी रोक दिया हो। और रही दूसरे सवाल की बात तो नहीं मेरे गुरुओं ने मुझे ये तो क़तई नहीं पढ़ाया था। हां, तीसरा सवाल कुछ आसान था। जवाब था- हां लेकिन उसे नहीं बताया। ये ख़बर नहीं थी कम से कम मुझे यही लगता है, हो सकता है मैं ग़लत हूं। चलिए बहुत हो गई क़िस्सागोई अब असलियत पर आते हैं। और उसके लिए सीधे चलते हैं असाइनमेंट डेस्क पर जहां विजुअल भेजे जाने के बाद की प्रतिक्रिया अपनी दोस्त से जानने का मौक़ा मिला।
क्या मस्त विजुअल है, तानो, हैडलाइन बनवा लो, लाइव प्लेआउट करा लेंगे और प्रबुद्ध का फ़ोनो ले लेंगे। और प्रबुद्ध जो इतनी देर से आपको नीतिशास्त्र पढ़ा रहा है उसने फ़ोनो पर ख़बर को तनवाने में मदद की। हालांकि बराबर एक दोस्त का भेजा शेर याद आ रहा था – उसूलों पर आंच आए तो टकराना ज़रूरी है, जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है।
माफ़ करना दोस्त, उसूलों पर हर रोज़ आंच आ रही है, ethics हर रोज़ दरकते हैं लेकिन टकरा नहीं पा रहा। शायद बहुत कमज़ोर हो चला हूं।

किस मुंह से कहता उसकी दोस्त से- अरी बेवकूफ़ तुझे नज़र नहीं आते ये 'मस्त' विजुअल। कैसे कहता उसकी बदहवास मां से - आपका बेटा जिए या मरे लेकिन प्लीज़ हमें विजुअल लेने से मत रोकिए, बल्कि हो सके तो थोड़ा साइड हो जाएं, चेहरा नहीं आ पा रहा फ़्रेम में। कैसे कहता उसके बाप से - एक बाइट तो बनती है, बताइए न कैसे हुआ ये सब। अगर नहीं दोगे तो पैकेज बनाने में मुश्किल होगी।

ख़ैर
, किसी तरह क़वायद ख़त्म हुई और ये ख़बर 'ज़िंदगी और मौत की जंग' के साथ तीन हैडलाइन देश के सबसे तेज़ चैनल पर ले गई। लड़के को ज़िंदगी मिली, ख़बर के हिस्से फ़क़त मौत आई।

9 comments:

  1. ये ब्लॉग वाकई में अपनी भड़ास निकालने का सर्वोत्तम माध्यम है।भड़ास...हां..भड़ास!जानते बूझते कुछ ग़लत करेंगे तो भड़ास ही जन्म लेगी न।और क्या करें ....कितनी बार कितने असाइनमेंट करने को मन नहीं मानता पर करना पड़ता है।इस पोस्ट में तुमने जो एथिक्स की बात की तो सच कहती हूं आलोक सर की क्लास याद आ गई।उन्होंने एथिक्स सेशन में बहुत कुछ पढ़ाया..कैसे रेप विक्टिम्स,माइनर्स इत्यादि से डील करें पर याद नहीं आता कि कभी उन्होंने ऐसे 'गाड़ी में फंसे' केस का उदाहरण देकर पढ़ाया हो।क्या पढ़ाते भला??हमारे सवालों का क्या जवाब देते वो भी??...कि ऐसे मामलों में एथिक्स को चैनल के टीआरपी नामक अश्वमेध यज्ञ की आहुति दे दो।
    चलो कोई बात नहीं..करते रहो..करना ही होगा। पर हां इन अनुभवों को यूंही बांटते रहो।

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  2. बहुत अच्छा लगा कि आज भी पत्रकारिता में आप जैसे संवेदनशील पत्रकार हैं. हर कोई किसी ना किसी काम से बंधा हुआ है और उसका काम ही उसका इथिक्स है.

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  3. बहुत ही संवेदनशील लेख है…

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  4. yaar aini tension nai laidi life vich...take lite and enjoy....ya to karo mat aur agar kar diya to socho mat...kyonki tumhari karne ke baad, sochne ka kaam to dear God ka hai ( maar diya jaye ya chod diya jaye)...swarg- nark ka decision to wohi lega na...tab tak tension kahe ko lene ka...mast raho...sachi kahun to tumhari haalat to jallad jaisi ho gayi hai by God!! woh logon ko phansi deta hai aur kai baar to shaayad bekasuron ko bhi aur baad mein shayad sochta hoga ki jise kisi mummy ne itni pain lekar paida kiya hoga, aaj woh uski maut ko anjaam de raha hai( heavy dialogue...ahem ahem...) par rozi-roti ke liye karna padta hai..haan agar tum sirf rozi-roti ke liye naukri nahi kar rahe ho, to agli baar aisi story karne se pehle sochna, baad mein sochne se kuch matlab nahi...sorry for some strong words here...

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  6. अबे साला पहले माइक घुसेड़ते हो फिर रोते काहे हो यार......किसने बोला था माँ बाप की बाइट लेने को....विज़्युअल मस्त थे न, ले कर भेज देते और एथिक्स को नंगा करने का काम असाइनमेंट पर छोड़ देते......या फिर इंतजार किया करो थोड़ा...फिर ट्रान्सफर ले सकते हो। पर इस तरह बार बार अपने ज़मीर से समझौता मत किया करो......खैर इतना ही क्या कम है कि संवेदनाएं अभी ज़िंदा हैं कम से कम टाइम आने पर अपने जूनियर को डंडा तो नहीं करोगे इस सब के लिए..........

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  7. चलों ब्लॉग की दुनिया मे एक नाम और जूड़ा। मैं तो इसे एक अच्छी कोशिश कहूंगा इसलिए नहीं की इससे तुम दूसरों से जूड़ोंगें बल्कि इसलिए की इससे तुम अपने आप से जूड़ोगे। उस अपने आप से जो आमतौर पर शहर की रफ्तार के साथ कहीं खो जाता है। ऑफिस और घर के बीच कहीं दफन हो जाता है। और जब उसकी कराह कभी कानों में हल्की सी सुनाई देती है तो तकलीफ जरुर होती है। अच्छा है कि तुम अपने आप की सुन रहे हो मगर इस आवाज को हमेशा सुनते रहना.... उम्मीद है कि आगे भी ये सफ़र यू ही चलेगा और कहने को बहुत कुछ होगा....

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  8. सही कहा तुमने मेरे दोस्त ....कुछ ऐसा ही होता है...तुम्हारी मन की भावनाओं को समझ सकती हूं

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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