Saturday, March 14, 2009

जिसके हम मामा हैं ! - चुनावी दाल में व्यंग्य का तड़का

शरद जोशी हिन्दी के उन लेखकों में से हैं जिन्होंने अपनी कलम ऐसे विषयों पर चलाई जिन पर दूसरे साहित्यकारों की नज़र नहीं जाती। इसके लिए व्यंग्य से बेहतर विधा नहीं हो सकती थी और शरदजी के तराशे व्यंग्यों की तीखी चोट आपको न सिर्फ़ परेशान करती है बल्कि झंझोड़ देती है।
चुनावी मौसम में उनकी एक बेहतरीन रचना आपके साथ बांट रहा हूं।


एक सज्जन बनारस पहुंचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया।
मामाजी ! मामाजी ! - लड़के ने लपक कर चरण छुए।
वे पहचाने नहीं। बोले- "तुम कौन ?"
"मैं मुन्ना।" आप पहचाने नहीं मुझे ?
"मुन्ना ?" वे सोचने लगे।
"हां, मुन्ना। भूल गए आप मामाजी। ख़ैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गए।"
"तुम यहां कैसे ?"
"मैं आजकल यहीं हूं।"
"अच्छा"
"हां।"
मामाजी अपने भान्जे के साथ बनारस घूमने लगे। चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर। फिर पहुंचे गंगाघाट। सोचा नहा लें।
"मुन्ना, नहा लें ?"
"ज़रूर नहाइए मामाजी। बनारस आए हैं और नहाएंगे नहीं, ये कैसे हो सकता है ?"
मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर गंगे।
बाहर निकले तो सामान ग़ायब, कपड़े ग़ायब। लड़का...मुन्ना भी ग़ायब !
"मुन्ना... ए मुन्ना !"
मगर मुन्ना वहां हो तो मिले। वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं।
"क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है ?"
कौन मुन्ना ?
"वही जिसके हम मामा हैं।"
"मैं समझा नहीं।"
"अरे, हम जिसके मामा हैं, वो मुन्ना।"
वे तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे। मुन्ना नहीं मिला।

भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रों ! चुनाव के मौसम में कौई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है। मुझे नहीं पहचाना ? मैं चुनाव का उम्मीदवार। होनेवाला एमपी। मुझे नहीं पहचाना। आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं। बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख़्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर ग़ायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया।

समस्यायों के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं। सबसे पूछ रहे हैं- क्यों साहब, वह कहीं आपको नज़र आया ? अरे, वही जिसके हम वोटर हैं।
पांच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं।

2 comments:

  1. बहुत ही शानदार और जानदार व्यंग्य रचना थी

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  2. जनता तो हमेशा से ही मामा है, हां भांजे हर पांच साल बदल जाते हैं उसी मुन्ना की तरह जो पांच साल के लिए गुल हो जाता है।

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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