बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़ुबां अब तक तेरी है -
फ़ैज़
Sunday, August 2, 2009
आरा मशीन पर रख दो सारे ग़म
कंस्ट्रक्शन का बूम है कुछ तो फ़ायदा उठा लो मेरी मानो आरा मशीन पर रख दो सारे ग़म एक-एक ग़म बेमौत मरेगा टुक़ड़े-टुकड़े यहां-वहां गिरेगा रह जायेंगी बस ख़ुशियां समेट के सारी ख़ुशियां प्यारी ग़म की दीवार ढहाओ इमारत बुलंद बनाओ
नेक इरादा है... और व्यक्त भी ठीक तरह से की है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteगम जिस रफ़्तार से बढ़ते जा रहे है...तो आज नहीं तो कल ये करना ही होगा...अच्छी रचना...
ReplyDeleteबहुत बढिया !!
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