Sunday, August 2, 2009

आरा मशीन पर रख दो सारे ग़म

कंस्ट्रक्शन का बूम है
कुछ तो फ़ायदा उठा लो
मेरी मानो
आरा मशीन पर रख दो सारे ग़म
एक-एक ग़म
बेमौत मरेगा
टुक़ड़े-टुकड़े
यहां-वहां गिरेगा
रह जायेंगी बस ख़ुशियां
समेट के सारी
ख़ुशियां प्यारी
ग़म की दीवार ढहाओ
इमारत बुलंद बनाओ

5 comments:

  1. नेक इरादा है... और व्‍यक्‍त भी ठीक तरह से की है

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. गम जिस रफ़्तार से बढ़ते जा रहे है...तो आज नहीं तो कल ये करना ही होगा...अच्छी रचना...

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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