Monday, November 9, 2009

हिंदी के लिए ऐतिहासिक दिन- ख़बरिया चैनलों ने दिया 'राष्ट्रभाषा' का दर्जा !


अबु आज़मी ने महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी में शपथ क्या लेनी चाही, हंगामा मच गया। राज के गुंडों ने अपना घटियापन दिखाते हुए उनका माइक फेंका, थप्पड़ मारा। यानी टीवी के विजुअल का पूरा मसाला मौजूद था। सो दोपहर होते-होते ख़बरिया चैनल इन विजुअल्स पर 'गोलों' और 'तीरों' की बौछार से जगमग हो गए। अब चूंकि मैं बेचारा हिंदी भाषी हूं तो हिंदी चैनल ही देख रहा था। कुछ ही देर में चैनलों के एंकर्स को जोश चढ़ा और एमएनस के प्रवक्ता शिरीष पार्कर और एमएनएस के दूसरे लोगों से सवाल दागना शुरु कर दिया कि भई, हिंदी तो 'राष्ट्रभाषा' है, जिसका दर्जा राज्यभाषा(मराठी) से बड़ा है तो इसमें इतना बवाल काहे के लिए। लगा कि शायद मैंने कुछ ग़लत सुना है। लेकिन शाम पांच बजे के बुलेटिन्स में भी कमोबेश वही सुर कि आख़िर राज ठाकरे 'राष्ट्रभाषा' का सम्मान क्यूं नहीं कर रहे।
यानी शाम होते-होते ये तो पक्का हो गया कि मुझे अपने कान चैक कराने की कोई ज़रूरत नहीं। एंकर्स हिंदी को 'राष्ट्रभाषा' ही मान रहे हैं। लगा, शायद प्राइम टाइम में चैनल के आला अधिकारी ये ग़लती सुधार लेंगे और एंकर्स को बता देंगे कि भाईयों और महिला एंकरों(चैनलों में महिला एंकरों को बहन कहने का रिवाज नहीं है!)- हिंदी, देश की 'राष्ट्रभाषा' नहीं बल्कि 'राजभाषा' है यानी वो भाषा जिसमें केन्द्र का सरकारी कामकाज किया जाए।

लेकिन, मैं कितना ग़लत था। प्राइम टाइम में हिंदी के ख़बरिया चैनलों का अपनी 'राजभाषा' के लिए प्यार हिलोरें लेने लगा था। और फिर प्यार में सब जायज़ होता है न। सो, क्रोमा सेट भी तैयार हो गए कि - राष्ट्रभाषा पर 'राज' नीति'। एक बड़े ख़बरिया चैनल के मुखिया से जब इस पर आपत्ति जताई गई कि ये ग़लत है। संविधान ने ही तय किया था कि इस देश में इतनी भाषाएं बोली जाती है और सभी प्रमुख भाषाएं परिपक्व हैं। ऐसे में किसी एक भाषा को 'राष्ट्रभाषा' नहीं बनाया जा सकता, तो उनका जवाब था कि अरे, हिंदी प्रदेशों के लोग तो इसे 'राष्ट्रभाषा' ही मानते हैं न। यानी चैनल का जो स्टेंड है, वो सही है। लेकिन ये तर्क समझ से परे है। इस तर्क पर चलें तो फिर राज ठाकरे से ज़्यादा सही तो कोई नहीं है जो मराठी प्रदेश का होकर उसे ही 'राष्ट्रभाषा' मान रहा है।

दरअसल, जो कुछ महाराष्ट्र विधानसभा में हुआ, वो शर्मनाक़ है। संविधान आपको छूट देता है, किसी भी भाषा में शपथ लेने की और जो गुंडागर्दी राज के गुर्गों ने की उसके लिए उन्हें कड़ी सज़ा भी मिलनी चाहिए। मेरा सवाल सिर्फ़ इतना है कि इस मुद्दे के बाद हमारे हिंदी ख़बरिया चैनलों का रवैया अजीब तरीक़े से इकतरफ़ा रहा है, जिसमें उनकी निष्पक्षता नहीं बल्कि हिंदी को लेकर बावलापन ज़्यादा नज़र आ रहा था। जो कहीं-कहीं उसे देश की दूसरी भाषाओं से श्रेष्ठ ठहराने की कोशिश तक जाने को तैयार था। ये अति उत्साह ही हिंदी को 'राजभाषा' से 'राष्ट्रभाषा' बना गया। इस अति उत्साह का एक नुकसान ये भी हुआ कि एमएनएस की इस घिनौनी हरकत पर जो दूसरे अहम सवाल उठने चाहिए थे, वो सब दब गए।

मैं हिंदी में ब्लॉगिंग करता हूं और मुझे ये भाषा बोलने पर फ़ख्र है, लेकिन क्या मुझे इससे ये हक़ मिल जाता है कि मैं कहूं कि नहीं, ब्लॉगिंग सिर्फ़ हिंदी में होनी चाहिए क्यूंकि यही श्रेष्ठ है, बाक़ी सब कूड़ा है। अगर नहीं, तो हिंदी ख़बरिया चैनलों को भी कोई हक़ नहीं कि हिंदी को लेकर बावलापन दिखाया जाए।

सबसे मज़े की बात ये कि हिंदी को 'राजभाषा' की जगह 'राष्ट्रभाषा' बताकर इन चैनलों ने हिंदी भाषा के बारे में जानकारी का अभाव ही दिखाया है।
वैसे सुबह अख़बार क्या लिखते हैं, देखना दिलचस्प होगा।

5 comments:

  1. इस देश में संविधान हमेशा सजाने के लिए रहा है पढ़ाने के लिए नहीं....जैसे धर्माधिकारी धर्म ग्रंथों की मनमाने तरीके से व्याख्या कर कुछ भी सही या ग़लत ठहरा देते हैं वैसे ही अब कुछ ज्ञाता संविधान की भी व्याख्या मनमाने तरीके से करने पर उतारु हैं। मगर बेहतर हो की संविधान में जो लिखा है जिस भावना से लिखा है उसे वैसे ही पढ़ा और समझा जाए।

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  2. प्रबुद्ध भाई,
    मैं औरों की तो नहीं जानता लेकिन मैंने नौ नवंबर को रात 10 बजे अपने प्रोग्राम बड़ी खबर में हिंदी के सिर्फ राजभाषा होने के मुद्दे को प्रमुखता के साथ उठाया था...

    जय हिंद...

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  3. यह जिहादी आतंकवादी का भारतीय संस्करण है इसीलिए भारत के स्वघोषित इकलौते राष्ट्रवादी इस घटना पर चुप हैं।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  4. प्रबुद्ध भाई,
    हिन्दी राष्ट्रभाषा भी है (अन्य राष्ट्र्भाशाओं के साथ) और राष्ट्र की राजभाषा भी है. इसलिए इसे दोनों में से कुछ भी कहना गलत नहीं है.

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  5. This is really inspiring and to say this is historical for Hindi and Literature.

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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