Friday, November 13, 2009

ई साला, मधु कोड़ा को दोषी कौन बताया !


मधु कोड़ा पर जब हर किसी के हाथ कोड़े बरसाने को मचल रहे हैं, ऐसे में हमें उन पर तरस आता है।
बेचारे का कसूर ही क्या है। जानना चाहते हैं, उनकी ग़लती क्या है। उनको अपने नाम की लाज बचाने की सज़ा मिल रही है।
मधु कोड़ा- मधु समझते हैं ना। अब तमाम मक्खियां शहद के पास खिंची आ रही हैं तो इसमें शहद का काहे का दोष। बल्कि वो तो आपको बराबर आगाह करत रहे कि- मूरख जनता, मैं ज़ुबान पर मधु लगता रहूंगा लेकिन पीठ पर जमकर कोड़े बरसाऊंगा। आख़िर अपने नाम का कोई इज़्ज़त है कि नहीं।

बताया जा रहा है कि मधु कोड़ा का बॉलीवुड कनेक्शन भी रहा। अब भइया सुन लिये होंगे कहीं से कि बॉलीवुड में ख़ानों का सिक्का चलता है। सो आव देखे न ताव, झारखंड की तमाम खानों पर क़ब्ज़ा जमा लिये। जल्दबाज़ी बहुतई थी। बेचारे देखना ही भूल गए कि बॉलीवुड वाले ख़ान में तो नुक़्ता लगा हुआ है। अब उनकी नुक़्ताचीनी की कोई आदत रही हो ध्यान दें। । वो रहे निहायत सीधे सादे आदमी। पिताजी किसानी करते रहे, वो घर में बोरियों में नोटों को आलू समझ कर भरते रहे।

4 हज़ार करोड़ रुपये डकार गए यानी 1 दिन में करीब 3 करोड़ 60 लाख। इतना डकारना था तो दो-चार सौ का हाजमोला का भी बजट रख लिये होते - पेट दर्द तो नहीं होता। पड़े रहे कुछ दिन अपोलो रांची में पेट दर्द में जकड़े। इतना पचाना आसान थोड़े ही है।
मज़े की तो जे रही कि जब तक कांग्रेस के छत्ते से टपक रहे थे, सब ठीकही था, जैसे ही अचानक कोई भालू आकर इस छत्ते की ऐसी तैसी कर गया तबही से 'बिना परों की मक्खी, न इस छत्ते की न उस छत्ते की' जैसी हालत हुई रही।

(चित्र सौजन्य: द हिंदू)

2 comments:

  1. तो इसमें शहद का काहे का दोष। बल्कि वो तो आपको बराबर आगाह करत रहे कि- मूरख जनता, मैं ज़ुबान पर मधु लगता रहूंगा लेकिन पीठ पर जमकर कोड़े बरसाऊंगा। आख़िर अपने नाम का कोई इज़्ज़त है कि नहीं।

    Ekdam sateek baat !

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  2. राजनीति ही नहीं समाज में भी ऐसे मधु कोड़ा बहुत हैं पर कौन पहल करेगा उन्हें बाहर खींच लाने की।

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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