Sunday, November 27, 2011

चलो आज जिया जाए


दूर तक खुले मैदान में
फेफड़ों में ताज़ा हवा लेके
हांफ कर गिरने तक
दौड़ का लुत्फ़ लिया जाए
चलो आज जिया जाए

कई घंटे की प्यास के बाद
मिनरल वॉटर की सारी बोतलें भूलकर
किसी खेत में ट्यूबवेल से
ओक भर पानी पिया जाए
चलो आज जिया जाए

अपार्टमेंट के 26वें फ्लोर की बालकनी से
काग़ज़ के दो टुकड़े गिराकर
कौन सा पहुंचेगा पहले
इस शर्त का मज़ा लिया जाए
चलो आज जिया जाए

मोबाइल, इंटरनेट से दूर
अख़बार, टीवी से दूर
जज़्बातों की बस्ती में
रिश्तों को बारीकी से सिया जाए
चलो आज जिया जाए


किसी अनजाने शहर में
बिल्कुल अकेले, तन्हा
अनजान निगाहों के बीच
कोई नया रिश्ता कायम किया जाए
चलो आज जिया जाए

अपने बच्चे के प्लेस्कूल में
किसी दिन कुछ देर ठहरकर
कुदरत की मासूमियत को
फिर से पिया जाए
चलो आज जिया जाए

छोटी सी है ज़िंदगी
छोटी छोटी हैं ख़ुशियां
छोटे हम, छोटे सपने
ज़िंदगी को रिटर्न गिफ़्ट दिया जाए
चलो आज जिया जाए

5 comments:

  1. वाकयी ..आज चलो जिया जाए .. हम लोग आदी हो चुके हैं कृतिमता में जीने के .. अच्छी प्रस्तुति

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  2. Life is what happens to us when we are busy making other plans.....sach ham jindgi ko jeena hi bhool gaye hain....na jane kis kalpana bhare kal ke liye ham aaj ko puri tarah bhoola dete hain.

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  3. बहुत खूब...वकाई मिट्टी की महक आ रही है.कुछ ना कर पाने की कसक आ रही है...और कुछ करने की हसरत में...झरने की झनझन आ रही है. नज्म बह रही है..

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  4. mobile se jud jaye to aur achha lagega,,09425547878

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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