Wednesday, July 15, 2009

सत्रहवें फ़्लोर पर...



दो इमारतों के बीच ही सही
सूरज दिखता तो है
सा'ब उसकी लाली को
चाय की प्याली और घरवाली के साथ
अपनी जाली से देखकर
ख़ुश हो लेना

तारों भरा आसमान नहीं दिखेगा
तो आसमान तो नहीं टूट पड़ेगा
आपके पड़ोसी किसी स्टार से कम थोड़े ही हैं

अब लाइफ़स्टाइल की नहीं
स्टाइल की बात कीजिए
किराए का घर कब तक झेलेंगे
यहां, न सही आपके घर का आंगन
नीचे सोसायटी का पार्क तो है
बस आप इस सोसायटी में आ जाइए
फिर देखिए 'सोसायटी' में कितना नाम होगा

आप भी न साहब
'सेक्स एंड द सिटी' सामने है
और आप 'बालिका वधू' पर अटके हैं
थोड़े अप मार्केट बनिए
भाभीजी को नई दोस्त दिलाइए
ख़ुद को भी नई, मेरा मतलब
नए दोस्तों से मिलवाइए

सब छोड़िए
बच्चों के फ़्यूचर के बारे में सोचिए
इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स के पम्फ़लेट
इन दरवाज़ों से नहीं सरकते साहब
यहां बच्चों को, वो क्या कहते हैं
हां, माहौल मिलेगा

तो क्या मैं सत्रहवें फ़्लोर पर
टू बीएचके पक्का समझूं ???

4 comments:

  1. वाह साहब, महानगरीय जीवन को आपके सही उकेरा है.

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  2. तारों भरा आसमान नहीं दिखेगा
    तो आसमान तो नहीं टूट पड़ेगा
    व्यथा को इतने खूबसूरत अन्दाज़ मे बयान करने का यह अन्दाज़ बहुत पसन्द आया

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  3. sundar kavita ..schchaai ko sundarata se kaha aapne.

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  4. pj.. tu kaise keh pata hai in rozmarra ki baton ko itni aasani se.... its jus too amazing!

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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