Sunday, September 13, 2009

सुनो, तुम्हारी आंखों में मेरे कुछ ख़्वाब पड़े हैं


मैं जब भी देखता हूं तुम्हारी आंखें
थोड़ा डर सा जाता हूं
पता नहीं इनमें से
कितने, पूरे कर सकूंगा
हां, मैं तुम्हारी इन आंखों में
हर पल बुनते
हज़ार ख़्वाबों की ही बात कर रहा हूं
सुनो
जो कभी मैं पूरा कर सका कोई ख़्वाब
तुम मुझसे रूठ तो नहीं जाओगी
तुम मुझे छोड़ तो नहीं जाओगी
हां-हां, मैं जानता हूं
हम
प्यार में हैं
ये नहीं है कोई सौदा
जिसमें लेन-देन हो
पता नहीं
फिर क्यूं डरता हूं

मेरे इस डर को दूर करने के लिए
तुम्हें एक वादा करना होगा
एक छोटा सा वादा

तुम ख़्वाब हमेशा
मेरी आंखों से देखोगी
और मुझे...
जब भी देखने होंगे ख़्वाब
कहूंगा तुमसे
सुनो,
तुम्हारी आंखों में मेरे कुछ ख़्वाब पड़े हैं

4 comments:

  1. आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.

    भाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.

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  2. तुम्हारी आँखों में कुछ मेरे ख्वाब पड़े हैं
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..!!

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  3. वाह....वाह....।
    बहुत सुन्दर भाव-भीनी रचना प्रस्तुत की है।
    बधाई!

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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