Saturday, May 9, 2009

मेरे तो नीतीश कुमार दूसरो न कोय !


मेरे प्यारे नीतीश...मेरे भोले नीतीश...मेरी सत्ता की नैया बीच भंवर में गुड़ गुड़ गोते खाए, नैया पार लगा दे। इस समय राजनीतिक दल 'पड़ोसन' के गीत को थोड़े ट्विस्ट के साथ पेश करते ही नज़र आ रहे हैं। नीतीश ने जिस तरह बिहार की तस्वीर बदलने में क़ामयाबी पाई है वो तो क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन जब ये तारीफ़ कोई ऐसा कर दे जिससे उम्मीद न हो तो राजनीतिक भूचाल उठना लाज़िमी है। कहानी शुरु हुई दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कयास से कि नीतीश कांग्रेस के साथ आ सकते हैं। फिर क्या था नीतीश को रिझाने का सिलसिला शुरु हो गया। इस रिझाऊ-वेला में राहुल गांधी, बुद्धदेब भट्टाचार्य और प्रकाश करात भी उतर आए। अब बीजेपी को ये सब कहां बर्दाश्त था कि जिस दोस्ती को हमने इतने साल सींचा उसे कोई दूसरा हमारी आंखों के सामने से उड़ा के ले जाए सो उसका मन-मंदिर भी अशांत हो गया। पार्टी के बड़े नेताओं को कहना पड़ा कि नहीं भाई...नीतीश हमारे साथ ही हैं। जब ख़ुद नीतीश ने कह दिया कि वो एनडीए के साथ हैं तो बीजेपी की बांछें खिल गईं। बोली...हम न कहते थे, नीतिश से दोस्ती कोई झूठी थोड़े ही है। मन ही मन ये भी कहते होंगे कि जाएगा कहां..हमसे रूठेगा तो बिहार में सरकार कांग्रेस क्या खाके बचाएगी।

बिहार की 40 लोकसभा सीटों में अंदेशा है कि नीतीश की क़ाबिलियत 20-22 सीट झटक सकती है। ऐसे में हर किसी की चाहत यही है कि नीतीश बस किसी तरह उनको तवज्जो दे दें। लालू-पासवान की पतली हालत कांग्रेस की दूसरी बड़ी चिंता है। मायावती, नायडू, देवेगौड़ा, मुलायम जैसे नेताओं की प्रधानमंत्री पद की चाहत के बीच नीतीश ही वो खेवनहार नज़र आते हैं जो ज़्यादा महंगे पड़े बिना ही दलों के काम आ सकते हैं। सो लगे रहो...तब तक नीतीश भी तारीफ़ों की बाढ़ के बीच शायद कोई किनारा तलाश लें।

4 comments:

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  2. Lagata hai Bhai jaan ne NITISH KUMAR par puraa research kiyaa haiiii

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  3. आज की राजनीतिक हालत के बारे में क्‍या कहा जाए ?

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  4. इसमे भी लगता है की लालू जी चाल है. नीतिश को दिल्ली ले चल कर बिहार पर कब्जा. क्योंकि जैसे नीतिश पलटी मारेंगे बिहार की जनता देव गौडा एंड फॅमिली टाइप उनका भी काम कर देगी.

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आपकी टिप्पणी से ये जानने में सहूलियत होगी कि जो लिखा गया वो कहां सही है और कहां ग़लत। इसी बहाने कोई नया फ़लसफ़ा, कोई नई बात निकल जाए तो क्या कहने !

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